श्री कृष्ण आरती (३)

आरती युगलकिशोर की कीजै । तन मन न्यौछावर कीजै ॥ गौरश्याम मुख निरखन लीजे । हरी का स्वरुप नयन भरी पीजै ॥ रवि शशि कोटि बदन की शोभा । ताहि निरिख मेरो मन लोभा ॥ ओढे नील पीट पट सारी । कुंजबिहारी गिरिवरधारी ॥ फूलन की सेज फूलन की माला । रतन सिंहासन बैठे नंदलाला ॥ कंचन थार कपूर की बाती । हरी आए निर्मल बही छाती ॥ श्री पुरषोत्तम गिरिवरधारी । आरती करत सकल ब्रजनारी ॥ नन्द -नंदन ब्रजभान किशोरी । परमानन्द स्वामी अविचल जोरी ॥

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