श्री सूर्यदेव आरती (१)

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान । जगत् के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा । धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान ॥ सारथी अरूण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी । तुम चार भुजाधारी ॥ अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटी किरण पसारे । तुम हो देव महान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान… ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते । सब तब दर्शन पाते ॥ फैलाते उजियारा जागता तब जग सारा । करे सब तब गुणगान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान… संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते । गोधन तब घर आते ॥ गोधुली बेला में हर घर हर आंगन में । हो तव महिमा गान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान… देव दनुज नर नारी ऋषी मुनी वर भजते । आदित्य हृदय जपते।। स्त्रोत ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी । दे नव जीवनदान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान… तुम हो त्रिकाल रचियता, तुम जग के आधार । महिमा तब अपरम्पार ॥ प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते । बल बृद्धि और ज्ञान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान… भूचर जल चर खेचर, सब के हो प्राण तुम्हीं । सब जीवों के प्राण तुम्हीं ॥ वेद पुराण बखाने धर्म सभी तुम्हें माने । तुम ही सर्व शक्तिमान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान… पूजन करती दिशाएं पूजे दश दिक्पाल । तुम भुवनों के प्रतिपाल ॥ ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी । शुभकारी अंशमान ॥ ऊँ जय सूर्य भगवान…

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