श्री विष्णु आरती (२)

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥ ॐ जय जगदीश हरे । जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का । स्वामी दुःख विनसे मन का । सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥ ॐ जय जगदीश हरे । मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी । स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी । तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥ ॐ जय जगदीश हरे । तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी । स्वामी तुम अन्तर्यामी । पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ ॐ जय जगदीश हरे । तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता । स्वामी तुम पालन-कर्ता । मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ ॐ जय जगदीश हरे । तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति । स्वामी सबके प्राणपति । किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥ ॐ जय जगदीश हरे । दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे । स्वामी तुम ठाकुर मेरे । अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥ ॐ जय जगदीश हरे । विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा । स्वमी पाप हरो देवा । श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥ ॐ जय जगदीश हरे । श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे । स्वामी जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥ ॐ जय जगदीश हरे ।

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