श्री राम चालीसा (२)

॥ चौपाई ॥ श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ निशि दिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहीं होई ॥ ध्यान धरें शिवजी मन मांही । ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं ॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना ॥ जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो संतन प्रतिपाला ॥ तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥ तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥ ब्रह्मादिक तव पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥ चारिउ भेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥ गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहिं ॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहीं होई ॥ राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥ गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ॥ शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ॥ फूल समान रहत सो भारा । पावत कोऊ न तुम्हरो पारा ॥ भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहूं न रण में हारो ॥ नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥ लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ॥ ताते रण जीते नहिं कोई । युद्ध जुरे यमहूं किन होई ॥ महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ॥ सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥ घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ॥ जो तुम्हरे नित पांव पलोटत । नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥ सिद्धि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ॥ औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥ इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ॥ जो तुम्हरे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ॥ सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ॥ तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥ जो कुछ हो सो तुमहिं राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥ राम आत्मा पोषण हारे । जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥ जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ॥ सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥ सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ॥ सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं ॥ ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ॥ धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ॥ सत्य शुद्ध देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥ सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन-मन धन ॥ याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥ आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिव मेरा ॥ और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ॥ तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥ साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्धता पावै ॥ अन्त समय रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ॥ श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ॥ ॥ दोहा ॥ सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय । हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ॥ राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय । जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय ॥

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