श्री कृष्ण आरती (५)

जय श्रीकृष्ण हरे, प्रभु जय श्रीकृष्ण हरे । भक्तजनन के दुख्र सारे पल में दूर करे ॥ परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी । जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी ॥ कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला । मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला ॥ दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे । गज के फंद छुड़ाए भवसागर तारे ॥ हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे । पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे ॥ केशी कंस विदारे नल कूबर तारे । दामोदर छवि सुंदर भगतन के प्यारे ॥ काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे । फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे ॥ राज्य उग्रसेन पायो माता शोक हरे । द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे ॥ जय जय श्री कृष्ण हरे ॐ जय श्री कृष्ण हरे

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