श्री अन्नपूर्णा आरती (१)

ओम जय अन्नपूर्णा माता, जय अन्नपूर्णा माता । ब्रह्‌मा सनातन देवी, शुभ फल की दाता ॥ अरिकुल पद्‌म विनाशिनि जन सेवक त्राता । जगजीवन जगदम्‍बा हरिहर गुणगाता ॥ सिंह को वाहन साजे कुण्डल हैं साथा । देव वृन्‍द जस गावत नृत्‍य करत ताथा ॥ सतयुग रूपशील अति सुन्‍दर नाम सती कहलाता । हेमाचल घर जनमी सखियन सँगराता ॥ शुंभनिशुंभ बिदारे हेमाचल स्‍थाता । सहस्‍त्र भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा ॥ सृष्टिरूप तू ही है जननी शिव संग रंगराता । नदी भृंगी बीन लही हे मदमाता ॥ देवन अरज करत तव चित को लाता । गावत दे दे ताली मन मे रंगराता ॥ श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता । सदा सुखी नित रहता सुख संपत्‍ति पाता ॥ ओम जय अन्नपूर्णा माता, जय अन्नपूर्णा माता । ब्रह्‌मा सनातन देवी, शुभ फल की दाता ॥

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