श्री हनुमान आरती (२)
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥ वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥ आरती किजे हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ जाके बल से गिरवर काँपे । रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥ अंजनी पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥ दे वीरा रघुनाथ पठाये । लंका जाये सिया सुधी लाये ॥ लंका सी कोट संमदर सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥ लंका जारि असुर संहारे । सियाराम जी के काज सँवारे ॥ लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे । आनि संजिवन प्राण उबारे ॥ पैठि पताल तोरि जम कारे । अहिरावन की भुजा उखारे ॥ बायें भुजा असुर दल मारे । दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥ सुर नर मुनि जन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ॥ कचंन थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजनी माई ॥ जो हनुमान जी की आरती गाये । बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥ लंका विध्वंश किये रघुराई । तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥ आरती किजे हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥