श्री शीतलादेवी चालीसा

॥ दोहा ॥ जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान । होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥ घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार । शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय श्री शीतला भवानी । जय जग जननि सकल गुणधानी ॥ गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती । पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥ विस्फोटक सी जलत शरीरा । शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥ मात शीतला तव शुभनामा । सबके काहे आवही कामा ॥ शोक हरी शंकरी भवानी । बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥ सूचि बार्जनी कलश कर राजै । मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥ चौसट योगिन संग दे दावै । पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥ नंदिनाथ भय रो चिकरावै । सहस शेष शिर पार ना पावै ॥ धन्य धन्य भात्री महारानी । सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥ ज्वाला रूप महाबल कारी । दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥ हर हर प्रविशत कोई दान क्षत । रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥ हाहाकार मचो जग भारी । सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥ तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा । कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥ विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो । मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥ बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा । मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥ अब नही मातु काहू गृह जै हो । जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥ पूजन पाठ मातु जब करी है । भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥ अब भगतन शीतल भय जै हे । विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥ श्री शीतल ही बचे कल्याना । बचन सत्य भाषे भगवाना ॥ कलश शीतलाका करवावै । वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥ विस्फोटक भय गृह गृह भाई । भजे तेरी सह यही उपाई ॥ तुमही शीतला जगकी माता । तुमही पिता जग के सुखदाता ॥ तुमही जगका अतिसुख सेवी । नमो नमामी शीतले देवी ॥ नमो सूर्य करवी दुख हरणी । नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥ नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी । दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥ श्री शीतला शेखला बहला । गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥ मात शीतला तुम धनुधारी । शोभित पंचनाम असवारी ॥ राघव खर बैसाख सुनंदन । कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥ सुनी रत संग शीतला माई । चाही सकल सुख दूर धुराई ॥ कलका गन गंगा किछु होई । जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥ हेत मातजी का आराधन । और नही है कोई साधन ॥ निश्चय मातु शरण जो आवै । निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥ कोढी निर्मल काया धारे । अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥ बंधा नारी पुत्रको पावे । जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥ सुंदरदास नाम गुण गावत । लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥ या दे कोई करे यदी शंका । जग दे मैंय्या काही डंका ॥ कहत राम सुंदर प्रभुदासा । तट प्रयागसे पूरब पासा ॥ ग्राम तिवारी पूर मम बासा । प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥ अब विलंब भय मोही पुकारत । मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥ बड़ा द्वार सब आस लगाई । अब सुधि लेत शीतला माई ॥ यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय । सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥ बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू । जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥

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