श्री शिव आरती (२)

धन धन भोले नाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में, तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में । जटा जूट के मुकुट शीश पर गले में मुंडन की माला, माथे पर छोटा चन्द्रमा कपाल में करके व्याला । जिसे देखकर भय ब्यापे सो गले बीच लपटे काला, और तीसरे नेत्र में तेरे महा प्रलय की है ज्वाला । पीने को हर भंग रंग है आक धतुरा खाने का, तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में । नाम तुम्हारा है अनेक पर सबसे उत्तत है गंगा, वाही ते शोभा पाई है विरासत सिर पर गंगा । भूत बोतल संग में सोहे यह लश्कर है अति चंगा, तीन लोक के दाता बनकर आप बने क्यों भिखमंगा । अलख मुझे बतलाओ क्या मिलता है अलख जगाने में, ये तो सगुण स्वरूप है निर्गुन में निर्गुन हो जाये । पल में प्रलय करो रचना क्षण में नहीं कुछ पुण्य आपाये, चमड़ा शेर का वस्त्र पुराने बूढ़ा बैल सवारी को । जिस पर तुम्हारी सेवा करती, धन धन शैल कुमारी को, क्या जान क्या देखा इसने नाथ तेरी सरदारी को । सुन तुम्हारी ब्याह की लीला भिखमंगे के गाने में । तीन लोक बस्ती में बसाये… किसी का सुमिरन ध्यान नहीं तुम अपने ही करते हो जाप, अपने बीच में आप समाये आप ही आप रहे हो व्याप । हुआ मेरा मन मग्न ओ बिगड़ी ऐसे नाथ बचाने में, तीन लोक बस्ती में बसाये… कुबेर को धन दिया आपने, दिया इन्द्र को इन्द्रासन, अपने तन पर ख़ाक रमाये पहने नागों का भूषण । मुक्ति के दाता होकर मुक्ति तुम्हारे गाहे चरण, देवीसिंह ये नाथ तुम्हारे हित से नित से करो भजन । तीन लोक बस्ती में बसाये…

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