श्री शनिदेव आरती (२)
चार भुजा ताहि छाजे , गदा हस्त प्यारी ॥जय०॥ रवि नंदन गज वंदन , यम् अग्रज देवा कष्ट न सो नर पाते , करते तब सेना ॥जय०॥ तेज अपार तुम्हारा, स्वामी सहा नहीं जावे तुम से विमुख जगत में, सुख नहीं पावे ॥जय०॥ नमो नमः रविनंदन सब गृह सिरताजा बंशीधर यश गावे रखियो प्रभु लाजा ॥जय०॥