श्री वैष्णो देवी चालीसा (२)
॥ दोहा ॥ महाशक्ति के रूप तीन, कियो त्रिकुट निवास ॥ नाम वैष्णवी धुर कर, पूरी करती आस ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय वैष्णवी महारानी । आदि शक्ति विदित भवानी ॥ गरुड़ वाहिनी जय जग माता । जय जय जय भक्तन सुख डाटा ॥ श्रीधर भक्त को दर्शन दिया । नाथों का भंडारा किया ॥ कुटिया में सब रहे सामान्य । भूमिका मंदिर बानी निशानी ॥ खाद्य पदार्थ मनवांछित मिला । गोरख नाथ का मन तब हिला ॥ मांस मदिरा भैरों ने कहा । वैष्णव भंडरा था महा ॥ भैरों नाथ बांह पकडन लगा । कन्या के जब पीछे भगा ॥ देवी हो गयी अंतर्ध्यान । निकली गंगा मर के बाण ॥ चरण पादुका ठहरी माता । महिमा अमित जगत विख्याता ॥ गर्भ-जून किया विश्राम । आदि-कुमारी लियो है नामा ॥ त्रिशूल प्रहार करि गुफा निकली । क्रोध कियो प्रगति तबक़ाली ॥ चढ़ी त्रिकूट जब आदि भवानी । लंगूर वीर चालत अगवानी ॥ पहुँच गुफा लगी सब रहने । काली वैष्णवी सरस्वती बहने ॥ श्री भैरव तारा जग तरनि । छिन्न भल भाव दुःख निवारणी ॥ पिंडी रूप धरा तुममता । श्रद्धा से जो दर्शन को आता ॥ धव्जा नारियल भेंट चढ़ाता । मुंह मांगी मुराद है पता ॥ जेक पुत्र होये नहीं भाई । सौ नर या विधि करे उपाय ॥ पांच वर्ष जो पाठकरावे । नारव्रतों में कन्या जिमावे ॥ पांच कन्या का पूजन करे । यथा-शक्ति भेंट वो धरे ॥ निश्चय हो ही प्रसन्न भवानी । पुत्र देहि ता कहें गन कहानी ॥ ऊँचा मंदिर भवन है तेरा । बीच पहाड़ों माँ का डेरा ॥ ज्योत है माँ की जगमग जगे । शेर सवारी प्यारी लगे ॥ तू ही वैष्णवी, तू ही रुद्राणी । तू ही शारदा अरू ब्राह्मणी ॥ दुर्गा, चंडी, काली, ज्वाला । भक्तो पर तू सदा ॥ सुआ चोली तेरे अंग है सजे । शीश पे माँ के छात्र विराजे दयाला ॥ अष्टभुजी वाराहिनी देवी । ब्रह्मा विष्णु महेश से सेवी ॥ तू ही जान्हवी अरू रुद्राणी । हेमावती आंबे निवारणी ॥ नाम तुम्हारे अनंत भवानी । वर्ण किमी मनुष्य अज्ञानी ॥ सच्चा माँ दरबार है तेरा । क्षमा करो जो दोष हो मेरा ॥ नंगे पैरों अकबर आया । सोने का माँ, छात्र चढ़ाया ॥ शरणागत हो कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्बे भवानी ॥ ध्यानु ने जब सीस चढ़ाया । प्रसन्न हुई तब महामाया ॥ सीस भेंट कठिन थी बड़ी । स्वीकार नारियल माँ ने करि ॥ पारी भीड़ संतान पर जब-जब । मात सहाय भाई तुम तब तब ॥ शुम्भ-निशुम्भ दैत्य तुम मारे । रक्त-बीज शत्रु संहारे ॥ चाँद-मुंड दैत्य सब घने । महिषासुर मधु कैटभ होने ॥ रूप कराल काली को धरे । सैन्य सहित सब दैत्य संहारे ॥ ऊँचा पर्वत भवन है तेरा । भवन पे झंडा लाल सुनेहरा ॥ बन गंगा चरणों में सजे । घंटा ध्वनि मंदिर में बजे ॥ जग मैग ज्योत जगे है न्यारी । नमो वैष्णवी मूरत प्यारी ॥