श्री वैष्णो देवी चालीसा (१)

॥ दोहा ॥ महाशक्ति के रूप तीन, कियो त्रिकुट निवास ॥ नाम वैष्णवी धुर कर, पूरी करती आस ॥ ॥ चौपाई ॥ सिप्व स्वरूपा सर्व गुनी । (मेरी मैया) वैष्णो कष्ट निदान ॥ शक्ति भक्ति दो हो हमे । दिव्या शक्ति की खान ॥ अभय दायिनी भय मोचनि । करुणा की अवतार ॥ संकट ट्रस्ट भक्तों का । कर भी दो उधार ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ गुफा निवासिनी मंगला माता । कला तुम्हारी जग विख्याता ॥ अल्प भूदि हम मुद अज्ञानी । ज्ञान उजियारा दो महारानी ॥ दुःख सागर से हमे निकालो । भ्रम के भूतों से माँ बचालो ॥ पुठ के सब अवरोध हटाना । अपनी छाया में माँ छुपाना ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ भक्त वत्सला भैरव हरिणी । आध अनंता माँ जग जननी ॥ दिव्या ज्योति जहाँ होये उजागर । वहां उदय हो धर्म दिवाकर ॥ पाप नाशिनी पुण्य की गंगा । तेरी सुधा से तारें कुसंग ॥ अमृतमयी तेरी मधुकर वाणी । हर लेती अभिमान भवानी ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ सुखद सामग्री दो भगतन को । करो फल दायक मेरी चिंतन को ॥ दुःख में न विचलित होने देना । धीरज धर्म न खोने देना ॥ उत्साह वर्धक कला तुम्हारी । मार्ग दर्शक बने हमारी ॥ घेरे कभी जो विषम अवस्था । तू ही सुझाना माँ कोई रास्ता ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ बिना द्वेष के विषधर काले । जो सद्भाव को डालनेवाले ॥ उनपर अंकुश सदा लगाना । दुर्गुण को सद्गुण से मिटाना ॥ परम तृप्ति का जल देना । दुर्बल काया को बल देना ॥ आत्मिक शांति के अभिलाषी । कहते बना दे दृढ़ विश्वासी ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ बसी हो तुम श्रीधर के मैं में । ज्योत तुम्हारी है कण कण में ॥ हम अभिषेक माँ करें तुम्हारा । कर दो माँ उधार हमारा ॥ वीर लंगूर प्रहरी तेरे । भजे तुम्हे माँ संज सवेरे ॥ विश्व विजयी है तेरी शक्ति । भाव निधि तारक पावन भक्ति ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ विघ्न हरण जग पालन हरी । सिंह वाहिनी मात प्यारी ॥ कृपा की हम पैर दृष्टि करना । सच्चे सुखकी वृष्टि करना ॥ यश गौरव सामान बढ़ाना । प्रतिभा का सूरज चमकना ॥ स्वच्छ सार्थिक श्रद्धा देना । शरणगति में हमको लेना ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ शारदा, लक्ष्मी और महाकाली । तीनो का संगम बलशाली ॥ रखना सिरों पे हाथ हमारे । सदा ही रहियो साथ हमारे ॥ आप्त विपदा भाव भय हारना । दुर्गम काज सुगम माँ करना ॥ हे दिव्या ज्योति सर्व व्यापक । तेरी दया कहुं हैं याचक ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ बुद्धि विवेक विद्या दायिनी । शक्ति तुम्हारी है रासायनि ॥ रोग शोक संताप को हारती । दुर्लभ वास्तु सुलभ हैकरटी ॥ जाप तेरा जब रंग दिखता । भवनवी का जल सुख है जाता ॥ रत्नो से घर भर दो मैया । विष को अमृत कर दो मैया ॥ जय जय आंबे जय जगदबे ॥ भक्ति सुमन जो करते अर्पण । धो धो उनके मैं के दर्पण ॥ हे त्रिभुवन की सिरजन हरी । सदा ही रखियो लाज हमारी ॥ सुख में जीवन का वर देना । सकल मनोरथ सिद्ध कर देना ॥ हिमम पर्वत पैर रहनेवाली । करना आश्रित की रखवाली ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥ दैत्यों की संघारक माता । आंबे कष्ट निवारक माता ॥ अखिल विश्व है तेरे सहारे । रोम रोम तेरा नाम उच्चारे ॥ स्वामिनी हो उठान पठन की । त्रिलोकी के आवागमन की ॥ हाथ दया का सर पैर धरना । हे मंगला माँ अमंगल हारना ॥ जय जय आंबे जय जगदम्बे ॥

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