श्री वैष्णो देवी आरती (३)
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता । द्वार तुम्हारे जो भी आता, बिन माँगे सबकुछ पा जाता ॥ मैया जय वैष्णवी माता । तू चाहे जो कुछ भी कर दे, तू चाहे तो जीवन दे दे । राजा रंग बने तेरे चेले, चाहे पल में जीवन ले ले ॥ मैया जय वैष्णवी माता । मौत-ज़िंदगी हाथ में तेरे मैया तू है लाटां वाली । निर्धन को धनवान बना दे मैया तू है शेरा वाली ॥ मैया जय वैष्णवी माता । पापी हो या हो पुजारी, राजा हो या रंक भिखारी । मैया तू है जोता वाली, भवसागर से तारण हारी ॥ मैया जय वैष्णवी माता । तू ने नाता जोड़ा सबसे, जिस-जिस ने जब तुझे पुकारा । शुद्ध हृदय से जिसने ध्याया, दिया तुमने सबको सहारा ॥ मैया जय वैष्णवी माता । मैं मूरख अज्ञान अनारी, तू जगदम्बे सबको प्यारी । मन इच्छा सिद्ध करने वाली, अब है ब्रज मोहन की बारी ॥ मैया जय वैष्णवी माता । सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया । पान, सुपारी, ध्वजा, नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया । सुआ चोली तेरे अंग विराजे, केसर तिलक लगाया । ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शंकर ध्यान लगाया । नंगे पांव पास तेरे अकबर सोने का छत्र चढ़ाया । ऊंचे पर्वत बन्या शिवाली नीचे महल बनाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया । सतयुग, द्वापर, त्रेता, मध्ये कलयुग राज बसाया । धूप दीप नैवेद्य, आरती, मोहन भोग लगाया । ध्यानू भक्त मैया तेरा गुणभावे, मनवांछित फल पाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी, तेरा पार न पाया ।