श्री वैष्णो देवी आरती (१)

हे मात मेरी, हे मात मेर, कैसी यह देर लगाई है दुर्गे । हे… भवसागर में गिरा पड़ा हूँ, काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ । मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ । हे… न मुझ में बल है न मुझ में विद्या, न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति । शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ । हे… न कोई मेरा कुटुम्ब साथी, ना ही मेरा शारीर साथी । आप ही उबारो पकड़ के बाहीं । हे… चरण कमल की नौका बनाकर, मैं पार हुंगा ख़ुशी मनाकर । यमदूतों को मार भगाकर । हे… सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ, सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ । नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ । हे… न मैं किसी का न कोई मेरा, छाया है चारों तरफ अन्धेरा । पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता । हे… शरण पड़े है हम तुम्हारी, करो यह नैया पार हमारी । कैसी यह देर लगाई है दुर्गे । हे…

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