श्री विश्वकर्मा आरती (२)
जब रथकार दंपति, तुम्हारी टर करी । सुनकर दीं प्रार्थना, विपत हरी सागरी ॥ एकानन चतुरानन, पंचानन राजे । त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ॥ ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्धि आवे । मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ॥ श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे । भाजात गजानांद स्वामी, सुख संपाति पावे ॥