श्री विश्वकर्मा आरती (१)
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥1॥ आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया । शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥2॥ ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई । ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई ॥3॥ रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना । संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना ॥4॥ जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी । सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी ॥5॥ एकानन चतुरानन, पंचानन राजे । द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे ॥6॥ ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे । मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे ॥6॥ श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे । कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे ॥8॥