श्री लक्ष्मी आरती (१)
जय देवी जय देवी जय महालक्ष्मी। वससी व्यापकरुपे तू स्थूलसूक्ष्मी॥ करवीरपुरवासिनी सुरवरमुनिमाता। पुरहरवरदायिनी मुरहरप्रियकान्ता। कमलाकारें जठरी जन्मविला धाता। सहस्त्रवदनी भूधर न पुरे गुण गातां॥ जय देवी जय देवी…॥ मातुलिंग गदा खेटक रविकिरणीं। झळके हाटकवाटी पीयुषरसपाणी। माणिकरसना सुरंगवसना मृगनयनी। शशिकरवदना राजस मदनाची जननी॥ जय देवी जय देवी…॥ तारा शक्ति अगम्या शिवभजकां गौरी। सांख्य म्हणती प्रकृती निर्गुण निर्धारी। गायत्री निजबीजा निगमागम सारी। प्रगटे पद्मावती निजधर्माचारी॥ जय देवी जय देवी…॥ अमृतभरिते सरिते अघदुरितें वारीं। मारी दुर्घट असुरां भवदुस्तर तारीं। वारी मायापटल प्रणमत परिवारी। हें रुप चिद्रूप दावी निर्धारी॥ जय देवी जय देवी…॥ चतुराननें कुश्चित कर्मांच्या ओळी। लिहिल्या असतिल माते माझे निजभाळी। पुसोनि चरणातळी पदसुमने क्षाळी। मुक्तेश्वर नागर क्षीरसागरबाळी॥ जय देवी जय देवी…॥