श्री राम चालीसा (३)

॥ दोहा ॥ पति चरण सरोज गहि । चरणोदक धरि भाल ॥ लिखौं विमल रामावली । सुमिरि अंजनीलाल ॥ राम चरित वर्णन करौं । मन कहँ ताप मिटाई ॥ मदन कदन रत राखि सिर । मन कहँ ताप मिटाई ॥ ॥ चौपाई ॥ राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै ॥ राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै ॥ रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं ॥ राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ॥ राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै ॥ राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत ॥ रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत ॥ राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ॥ राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै ॥ राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन ॥ रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै ॥ राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ॥ राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा ॥ राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें ॥ रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें ॥ राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ॥ रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें ॥ राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । मम्ता त्यागि एक रस जानिहें ॥ राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें ॥ राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ॥ रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों ॥ राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा ॥ राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता ॥ राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ॥ राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा ॥ रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत ॥ राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा ॥ राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ॥ रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु ॥ राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट ॥ राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर ॥ रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ॥ राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा ॥ राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता ॥ रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला ॥ राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ॥ राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ ॥ रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा ॥ रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा ॥ रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ॥ ॥ दोहा ॥ राम नाम नित भजहु मन । रातिहुँ दिन चित लाई ॥ मम्ता मत्सर मलिनता । मनस्ताप मिटि जाई ॥ राम का तिथि बुध रोहिणी । रामावली किया भास ॥ मान सहस्त्र भजु दृग समेत । मगसर सुन्दरदास ॥

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