श्री राम चालीसा (१)
॥ दोहा ॥ गणपति चरण सरोज गहि । चरणोदक धरि भाल, लिखौं विमल रामावली । सुमिरि अंजनीलाल, राम चरित वर्णन करौं । रामहिं हृदय मनाई, मदन कदन रत राखि सिर । मन कहँ ताप मिटाई ॥ ॥ चौपाई ॥ राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै, राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै, रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं, राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ॥ राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै, राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत, रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत, राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ॥ राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै, राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन, रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै, राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ॥ राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा, राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें, रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें, राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ॥ रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें, राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । मम्ता त्यागि एक रस जानिहें, राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें, राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ॥ रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों, राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा, राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता, राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ॥ राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा, रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत, राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा, राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ॥ रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु, राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट, राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर, रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ॥ राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा, राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता, रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला, राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ॥ राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ, रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा, रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा, रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ॥ ॥ दोहा ॥ राम नाम नित भजहु मन । रातिहुँ दिन चित लाई, मम्ता मत्सर मलिनता । मनस्ताप मिटि जाई, राम का तिथि बुध रोहिणी । रामावली किया भास, मान सहस्त्र भजु दृग समेत । मगसर सुन्दरदास ॥