श्री राम आरती (४)

आरती कीजे, श्री रामचंद्र की, दुष्टदलन सीतापति जी की ॥ पहली आरती, पुष्पन की माला, काली नाग नाथ लाए गोपाला ॥ दूसरी आरती, देवकी नंदन, भक्त उबारन कंस निकंदन ॥ तीसरी आरती, त्रिभुवन मोहे, रत्न सिंहासन सीता राम जी सोहे ॥ चौथी आरती, चहुं युग पूजा, देव निरंजन स्वामी और न दूजा ॥ पांचवीं आरती, राम को भावे, रामजी का यश नामदेवजी गावें ॥

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