श्री राम आरती (३)

भय प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशिल्या हितकारी । हरषित महतारी मुनि-मन हारी अदभुत रूप निहारी ॥ लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुजचारी । भूषण बन माला नयन विशाला शोभा सिन्धु खरारी ॥ कह दुई कर जोरी स्तुति तोरी केहिविधि करूं अनन्ता । माया गुण ज्ञान तीत अमाना वेद पुराण भनन्ता ॥ करुण सुखसागर सब गुनआगर जोहिं गावहीं श्रुतिसंता । सो मम हित लागी जन अनुरागी प्रगट भय श्रीकन्ता ॥ ब्रह्माण्ड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रतिवेद कहे । मम उर सो वासी यह उपहासी सुनत धीरमति थिर नरहे ॥ उपजा जब ज्ञाना प्रभुमुस्कान चरित बहुतविधि कीन्ह्चहे । कहि कथा सुनाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सूत प्रेम लहे ॥ माता पुनि बोली सो मति डोली तजहूँ तात यह रूपा । कीजे शिशुलीला अति प्रियशीला यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना हवै बालक सुर भूप । यह चरित जो गावहिं हरिपद पावहीं ते न परहीं भव कूपा ॥ ॥दोहा॥ विप्र  धेनु सुर सन्त हित, लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु, मायों  गुण गोपार ॥

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