श्री राम आरती (२)
आरती श्रीरामायणजी की । कीरति कलित ललित सिय पी की ॥ गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद । वालमीक विग्यान बिसारद ॥ सुक सनकादि सेष अरु सारद । बरनि पवनसुत कीरति नीकी ॥ गावत वेद पुरान अष्टदस । छऔ सास्त्र सब ग्रंथन को रस ॥ मुनि जन धन संतन को सरबस । सार अंस संमत सबही की ॥ गावत संतत संभु भवानी । अरु घटसंभव मुनि विज्ञानी ॥ व्यास आदि कबिबर्ज बखानी । काकभुसुण्डि गरुड़ के ही की ॥ कलि मल हरनि बिषय रस फीकी । सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ॥ दलन रोग भव भूरि अमी की । तात मात सब बिधि तुलसी की ॥