श्री भैरवनाथ आरती (३)

सुनो जी भैरव लाडिले कर जोड़ कर विनती करूँ । कृपा तुम्हारी चाहिये मैं ध्यान तुम्हारा ही धरूँ ॥ मैं चरण छूता आपके अर्जी मेरी सुन लीजिये । मैं हूँ मति का मन्द मेरी कुछ मदद तो कीजिये ॥ महिमा तुम्हारी बहुत कुछ थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ । सुनो जी भैरव लाडिले कर जोड़ कर विनती करूँ… करते सवारी स्वान की चारों दिशा में राज्य है । जितने भूत और प्रेत सब के आप ही सरताज हैं ॥ हथियार हैं जो आपके उनका क्या मैं वर्णन करूँ । सुनो जी भैरव लाडिले कर जोड़ कर विनती करूँ… माताजी के सामने तुम नृत्य भी करते सदा । गा गा के गुणानुवाद से उनको रिझाते हो सदा ॥ एक सांकली है आपकी तारीफ उसकी क्या करूँ । सुनो जी भैरव लाडिले कर जोड़ कर विनती करूँ… बहुत सी महिमा तुम्हारी मेंहदीपुर सरनाम है । आते जगत के यात्री बजरंग का स्थान है ॥ श्री प्रेतराज सरकार के मैं शीश चरणों मैं धरूँ । सुनो जी भैरव लाडिले कर जोड़ कर विनती करूँ… निशिदिन तुम्हारे खेल से माताजी खुश होती रहें । सर पर तुम्हारे हाथ रख कर आशीर्वाद देतीं रहें ॥ कर जोड़कर विनती करूँ अरू शीश चरणों मैं धरूँ । सुनो जी भैरव लाडिले कर जोड़ कर विनती करूँ…

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