श्री परशुराम आरती (२)
ॐ जय परसुधर, स्वामी जय परसुधारी । सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी ॥ जमदग्नि सूत नरसिंघ, माँ रेणुका जाया । मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया ॥ कंधे सूत्र जनेऊ, गाल, रुद्राक्ष माला । चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला ॥ ताम्रा श्याम धन कैशा, शीस जटा बांधी । सूजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी ॥ मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना । दीन-हीन जो विप्रन, रक्षक दिन रैना ॥ कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता । कंध चाप-शर वैष्ण्व, ब्रह्मण कुल त्राता ॥ माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे । मेरी बिरद संभारो, दुआर पड़ा मैं तेरे ॥ अजर-अमर श्री परशुराम की आरती जो गावे । पूर्णेन्दु शिव साखी, सुच सम्पति पावे ॥