श्री दुर्गा आरती (२)
मैं तेरा कंगाल पुजारी सौ-सौ दीप कहाँ से लाऊं । मेरे पास भक्ति है माता मैं उसी का दीप जलाऊँ । मैं एक दिए की आरती उतारूं गौरी मैया । जय० जय अम्बे जगदम्बे गौरी जय अम्बे जगदम्बे । धन होता तो सोना चांदी सुख से अर्पण करता । हीरे मोती ला लाकर, मां तेरी झोली भरता । मांगे हुए दो फूल से सिंगर करूं गौरी मैया । जय० ना मैं मांगू राजपाट मां और न चन्दा तारे । मैं तो सुख दुःख में बस मैया पकडूं चरण तुम्हारे । दिन रात तुम्हारा नाम ही पुकारूँ गौरी मैया । जय० मेरे सब कुछ तेरी मूरति माँ इससे तो आ जाओ, मैं शाम सबेरे रास्ता निहारूं गौरी मैया । जय०