श्री तुलसी आरती (३)

जय-जय तुलसी माता । सब जग की सुख दाता, वर दाता ॥ जय-जय०… सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर । रुज से रक्षा करके भव द्दाता ॥ जय-जय०… बहु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या । विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता ॥ जय-जय०… हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित । पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता ॥ जय-जय०… लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में । मानवलोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता ॥ जय-जय०… हरि को तुम अति प्यारी श्यामवरण सुकुमारी । प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता ॥ जय-जय०…

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