श्री चित्रगुप्त चालीसा (१)
॥ दोहा ॥ सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश । ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश ॥ करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय । चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय ॥ ॥ चौपाई ॥ जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर । जय यमेश दिगंत उजागर ॥ अज सहाय अवतरेउ गुसांई । कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई ॥ श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा । भांति-भांति के जीवन राचा ॥ अज की रचना मानव संदर । मानव मति अज होइ निरूत्तर ॥ भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई । धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई ॥ राचेउ धरम धरम जग मांही । धर्म अवतार लेत तुम पांही ॥ अहम विवेकइ तुमहि विधाता । निज सत्ता पा करहिं कुघाता ॥ श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी । त्रय देवन कर शक्ति समानी ॥ पाप मृत्यु जग में तुम लाए । भयका भूत सकल जग छाए ॥ महाकाल के तुम हो साक्षी । ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी ॥ धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो । कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो ॥ राम धर्म हित जग पगु धारे । मानवगुण सदगुण अति प्यारे ॥ विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें । पालन धर्म करम शुचि साजे ॥ महादेव के तुम त्रय लोचन । प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन ॥ सावित्री पर कृपा निराली । विद्यानिधि माॅं सब जग आली ॥ रमा भाल पर कर अति दाया । श्रीनिधि अगम अकूत अगाया ॥ ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो । जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो ॥ गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा । जाके कर्म गहइ तव हाथा ॥ रावण कंस सकल मतवारे । तव प्रताप सब सरग सिधारे ॥ प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा । सोउ करत तुम्हारी सेवा ॥ रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी । विघ्न हरण शुभ काज संवारी ॥ व्यास चहइ रच वेद पुराना । गणपति लिपिबध हितमन ठाना ॥ पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा । असवर देय जगत कृत कीन्हा ॥ लेखनि मसि सह कागद कोरा । तव प्रताप अजु जगत मझोरा ॥ विद्या विनय पराक्रम भारी । तुम आधार जगत आभारी ॥ द्वादस पूत जगत अस लाए । राशी चक्र आधार सुहाए ॥ जस पूता तस राशि रचाना । ज्योतिष केतुम जनक महाना ॥ तिथी लगन होरा दिग्दर्शन । चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन ॥ राशी नखत जो जातक धारे । धरम करम फल तुमहि अधारे॥ राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई । प्रथम गुरू महिमा गुण गाई ॥ श्री गणेश तव बंदन कीना । कर्म अकर्म तुमहि आधीना ॥ देववृत जप तप वृत कीन्हा । इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा ॥ धर्महीन सौदास कुराजा । तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा ॥ हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा । कायथ परिजन परम पितामा ॥ शुर शुयशमा बन जामाता । क्षत्रिय विप्र सकल आदाता ॥ जय जय चित्रगुप्त गुसांई । गुरूवर गुरू पद पाय सहाई ॥ जो शत पाठ करइ चालीसा । जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा ॥ विनय करैं कुलदीप शुवेशा । राख पिता सम नेह हमेशा ॥ ॥ दोहा ॥ ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र। कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र ॥ पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप । श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप ॥