श्री चित्रगुप्त आरती (२)
ॐ जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे । भक्त जनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी । भक्तन के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरति, पीताम्बर राजै । मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अङ्ग साजै ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ कष्ट निवारण, दुष्ट संहारण, प्रभु अन्तर्यामी । सृष्टि संहारण, जन दु:ख हारण, प्रकट हुये स्वामी ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ कलम, दवात, शङ्ख, पत्रिका, कर में अति सोहै । वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ सिंहासन का कार्य सम्भाला, ब्रह्मा हर्षाये । तैंतीस कोटि देवता, चरणन में धाये ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ नृपति सौदास, भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा । वेगि विलम्ब न लायो, इच्छित फल दीन्हा ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता । जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी । तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं । चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥ न्यायाधीश बैकुण्ठ निवासी, पाप पुण्य लिखते । हम हैं शरण तिहारी, आस न दूजी करते ॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे… ॥