श्री चित्रगुप्त आरती (१)
श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी । पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी ॥ सीस मुकुट, कानों में कुण्डल अति सोहे । श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे ॥ भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला । शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला ॥ अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै । कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे ॥ नृप सौदास अनर्थी, था अति बलवाला । आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा ॥ भक्ति भाव से यह आरती जो कोई गावे । मनवांछित फल पाकर सद्गति पावे ॥