श्री गायत्री आरती (२)

ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती, सो भक्ति ही पूर्ती करै जहं घी की । आरती श्री गायत्री जी की ॥ मानस की शुचि थाल के ऊपर, देवी की जोति जगै, जहं नीकी । आरती श्री गायत्री जी की ॥ शुद्ध मनोरथ के जहां घण्टा, बाजैं करैं पूरी आसहु ही की । आरती श्री गायत्री जी की ॥ जाके समक्ष हमें तिहूँ लोक कै, गद्दी मिलै तबहूं लगै फीकी । आरती श्री गायत्री जी की ॥ संकट आवैं न पास कबौ तिन्हें, सम्पदा औ सुख की बनै लीकी । आरती श्री गायत्री जी की ॥ आरती प्रेम सो नेम सों करि, ध्यावहिं मूरति ब्रह्म लली की । आरती श्री गायत्री जी की ॥

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