श्री काली चालीसा (१)
॥ दोहा ॥ जय काली जगदम्ब जय, हरनि ओघ अध पुंज । वास करहु निज दास के, निशदिन हृदय-निकुंज ॥ जयति कपाली कालिका, कंकाली सुख दानि । कृपा करहु वरदायिनी, निज सेवक अनुमानि ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय काली कंकाली । जय कपालिनी, जयति कराली ॥१॥ शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा । जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा ॥२॥ आर्या, हला, अम्बिका, माया । कात्यायनी, उमा, जगजाया ॥३॥ गिरिजा, गौरी, दुर्गा, चण्डी । दाक्षाणायिनी, शाम्भवी, प्रचंडी ॥४॥ पार्वती, मंगला, भवानी । विश्र्वकारिणी, सती, मृडानी ॥५॥ सर्वमंगला, शैल नन्दिनी । हेमवती, तुम जगत वन्दिनी ॥६॥ ब्रह्मचारिणी, कालरात्रि जय । महारात्रि जय, मोहरात्रि जय ॥७॥ तुम त्रिमूर्ति, रोहिणी, कालिका । कूष्माण्डा, कार्तिकी, चण्डिका ॥८॥ तारा भुवनेश्र्वरी अनन्या । तुम्हीं छिन्नमस्ता, शुचिधन्या ॥९॥ धूमावती, षोडशी माता । बगला, मातंगी विख्याता ॥१०॥ तुम भैरवी मातु तुम कमला । रक्तदन्तिका, कीरति, अमला ॥११॥ शाकम्भरी, कौशिकी, भीमा । महातमा अग जग की सीमा ॥१२॥ चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री । ब्रह्मवादिनी मां गायत्री ॥१३॥ रुद्राणी तुम कृष्ण पिंगला । अग्निज्वाल तुम सर्वमंगला ॥१४॥ मेघस्वना, तपस्विनि, योगिनी । सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी ॥१५॥ जलोदरी, सरस्वती, डाकिनी । त्रिदशेश्वरी, अजेय लाकिनी ॥१६॥ पुष्टितुष्टि, धृति, स्मृति, शिव दूती । कामाक्षी, लज्जा, आहूती ॥१७॥ महोदरी, कामाक्षि हारिणी । विनायकी, श्रुति महा शाकिनी ॥१८॥ अजा, कर्ममोही, ब्रह्माणी । धात्री, बाराही, शर्वाणी ॥१९॥ स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी । मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी ॥२०॥ नाम रुप गुण अमित तुम्हारे । शेष शारदा बरणत हारे ॥२१॥ तनु छवि श्यामवर्ण तव माता । नाम कालिका जग विख्याता ॥२२॥ अष्टादश तव भुजा मनोहर । तिनमहं अस्त्र विराजत सुंदर ॥२३॥ शंख चक्र अरु गदा सुहावन । परिघ भुशुण्डी घण्टा पावन ॥२४॥ शूल बज्र धनुबाण उठाये । निधिचर कुल सब मारि गिराये ॥२५॥ शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे । रक्तबीज के प्राण निकारे ॥२६॥ चौंसष्ठ योगिनी नाचत संगा । मद्यपान कीन्हेउ रण गंगा ॥२७॥ कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि । दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि ॥२८॥ कर खप्पर त्रिशूल भयकारी । अहै सदा सन्तन सुखकारी ॥२९॥ शव आरुढ नृत्य तुम साजा । बजत मृदंग भेरि के बाजा ॥३०॥ रक्त पान अरिदल को कीन्हा । प्राण तजेउ जो तुम्हीं न चीन्हा ॥३१॥ लपलपाति जिह्वा तव माता । भक्तन सुख दुष्टन दुःख दाता ॥३२॥ लसत भाल सेंदुर को टीको । बिखरे केश रुप अति नीको ॥३३॥ मुंडमाल गल अतिशय सोहत । भुजामाल किंकण मनमोहत ॥३४॥ प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी । जगदम्बा कहि वेद बखनी ॥३५॥ तुम मशान वासिनी कराला । भजत तुरत काटहु भवजाला ॥३६॥ बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर । जहॉ बिराजत विविध रुप धर ॥३७॥ विन्ध्यवासिनी कहूँ बडाई । कहूँ कालिका रुप सुहाई ॥३८॥ शाकम्भरी बनी कहुँ ज्वाला । महिषासुर मर्दिनी कराला ॥३९॥ कामाख्या तव नाम मनोहर । पुजवहिं मनोकामना द्रुततर ॥४०॥ चंड मुंड वध छिन महं करेउ । देवन के उर आनन्द भरेउ ॥४१॥ सर्व व्यापिनी तु माँ तारा । अरिदल दलन लेहु अवतारा ॥४२॥ खलबल मचत सुनत हुँकारी । अगजग व्यापक देह तुम्हारी ॥४३॥ तुम विराट रुपा गुणखानी । विश्व स्वरुपा तुम महारानी ॥४४॥ उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण । करहु दास के दोष निवारण ॥४५॥ माँ उर वास करहु तुम अंबा । सदा दीन जन की अवलंबा ॥४६॥ तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई । ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई ॥४७॥ विश्वरुप तुम आदि भवानी । महिमा वेद पुराण बखानी ॥४८॥ अति अपार तव नाम प्रभावा । जपत न रहत रंच दुःख दावा ॥४९॥ महाकालिका जय कल्याणी । जयति सदा सेवक सुखदानी ॥५०॥ तुम अनन्त औदार्य विभूषण । कीजिये कृपा क्षमिये सब दूषण ॥५१॥ दास जानि निज दया दिखावहु । सुत अनुमानित सहित अपनावहु ॥५२॥ जननी तुम सेवक प्रति पाली । करहु कृपा सब विधि माँ काली ॥५३॥ पाठ करै चालीसा जोई । तापर कृपा तुम्हारी होई ॥५४॥ ॥ दोहा ॥ जय तारा जय दक्षिणा, कलावती सुखमूल । शरणागत भक्तन है, रहहु सदा अनुकूल ॥