श्री काली आरती (१)
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोड तेरे द्वार खडे । पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरेसुन ॥१॥ जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे । सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ॥२॥ बुद्धि विधाता तू जग माता, मेरा कारज सिद्व रे । चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे ॥३॥ जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे । गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरेमाता ॥४॥ होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करेशुक्र सुखदाई सदा । सहाई संत खडे जयकार करे ॥५॥ ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडेअटल सिहांसन । बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरेवार शनिचर ॥६॥ कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे । खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे ॥७॥ शुम्भ निशुम्भ को क्षण मे मारे, महिषासुर को पकड दले । आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे ॥८॥ कुपित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे । जब तुम देखी दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे ॥९॥ सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जन की अर्ज कबूल करे । सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे ॥१०॥ सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे । दर्शन पावे मंगल गावे, सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ॥११॥ ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे । इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे ॥१२॥ जय जननी जय मातु भवानी, अटल भवन मे राज्य करे । सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे ॥१३॥